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न जा॒मये॒ तान्वो॑ रि॒क्थमा॑रैक्च॒कार॒ गर्भं॑ सनि॒तुर्नि॒धान॑म्। यदी॑ मा॒तरो॑ ज॒नय॑न्त॒ वह्नि॑म॒न्यः क॒र्ता सु॒कृतो॑र॒न्य ऋ॒न्धन्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

na jāmaye tānvo riktham āraik cakāra garbhaṁ sanitur nidhānam | yadī mātaro janayanta vahnim anyaḥ kartā sukṛtor anya ṛndhan ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

न। जा॒मये॑। तान्वः॑। रि॒क्थम्। आ॒रै॒क्। च॒कार॑। गर्भ॑म्। स॒नि॒तुः। नि॒ऽधान॑म्। यदि॑। मा॒तरः॑। ज॒नय॑न्त। वह्नि॑म्। अ॒न्यः। क॒र्ता। सु॒ऽकृतोः॑। अ॒न्यः। ऋ॒न्धन्॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:31» मन्त्र:2 | अष्टक:3» अध्याय:2» वर्ग:5» मन्त्र:2 | मण्डल:3» अनुवाक:3» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (जामये) जामाता के लिये (तान्वः) सूक्ष्म (रिक्थम्) धन को (न, आरैक्) नहीं देता जिसने (सनितुः) विभागकर्त्ता के (निधानम्) निरन्तर धारण करता है उस (गर्भम्) गर्भ को (चकार) किया (अन्यः) अन्य जन (वह्निम्) पहुँचानेवाले को जैसे वैसे (यदि) जो (अन्यः) अन्य (ऋन्धन्) सिद्ध करता हुआ (सुकृतोः) उत्तम कर्मकारियों का (कर्त्ता) कर्त्ता पुरुष है उसको (मातरः) आदर की करनेवाली (जनयन्त) उत्पन्न करती है ॥२॥
भावार्थभाषाः - जैसे माता सन्तानों को उत्पन्न कर उनकी वृद्धि करती है, वैसे ही अग्नि को उत्पन्न करके उसकी वृद्धि करे और वैसे ही प्रत्येक स्त्री सन्तानों की वृद्धि करे ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे मनुष्यो जो जामये तान्वो रिक्थं नारैक् सनितुर्निधानं गर्भं चकार अन्यो वह्निमिव यद्यन्य ऋन्धन्त्सुकृतोः कर्त्ता भवेत्तं मातरो जनयन्त ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (न) (जामये) जामात्रे (तान्वः) तन्वः। अत्रान्येषामपीत्याद्यचो दीर्घः। (रिक्थम्) धनम्। रिक्थमिति धननाम। निघं० २। १०। (आरैक्) ऋणक्ति (चकार) (गर्भम्) (सनितुः) विभाजकस्य (निधानम्) नितरां दधाति यस्मिँस्तम् (यदि)। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (मातरः) मान्यस्य कर्त्र्यः (जनयन्त) जनयन्ति (वह्निम्) प्रापकम् (अन्यः) (कर्त्ता) (सुकृतोः) यौ शोभनं कुरुतस्तयोः (अन्यः) (ऋन्धन्) साध्नुवन् ॥२॥
भावार्थभाषाः - यथा माताऽपत्यानि जनयित्वा वर्धयति तथैव वह्निं जनयित्वा वर्धयेत् तथैव जायापत्यानि वर्धयेत् ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जशी माता संतानांना उत्पन्न करून त्यांची वृद्धी करते तसेच अग्नीला उत्पन्न करून त्याची वृद्धी करावी. तसेच प्रत्येक स्त्रीने संतानाची वाढ करावी. ॥ २ ॥